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जीव उत्पत्ति के भौतिक सिद्धान्त, मिलर का प्रयोग और सिद्धांत क्या है

 




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जीव उत्पत्ति के भौतिक सिद्धान्त :-


• अरस्तू के अनुसार निर्जीव पदार्थों से जीवों की उत्पत्ति हुई है। जैसे-कीचड़ से मेंढक, सड़ते माँस से मक्खियाँ आदि ।


जीव की उत्पत्ति में ईश्वर की भूमिका को नकार कर प्राकृतिक नियमों के अनुरूप जीव की उत्पत्ति की सर्वप्रथम विवेचना करने का श्रेय चार्ल्स डार्विन को जाता है।


×    सन् 1924 में रूसी वैज्ञानिक अलेक्जेण्डर ओपेरिन ने जीव की उत्पत्ति नाम से निर्जीव पदार्थों से जीवन की उत्पत्ति का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। 

ओपेरिन  ने कहा कि लुई पाश्चर का यह कथन सच है कि जीव की उत्पत्ति जीव से ही होती है ।

परन्तु प्रथम जीव पर यह सिद्धान्त लागू नहीं होता। प्रथम जीव की उत्पत्ति तो निर्जीव पदार्थ से ही हुई होगी। ओपेरिन ने कहा कि सजीव व निर्जीव में कोई मूलभूत अन्तर नहीं होता। रासायनिक पदार्थों के जटिल संयोजन से ही जीवन का विकास हुआ है। विभिन्न खगोलीय पिण्डों पर मिथेन की उपस्थिति इस बात का संकेत है कि पृथ्वी का प्रारम्भिक वायुमण्डल मिथेन, अमोनिया,हाइड्रोजन और जलवाष्प से बना होने के कारण अत्यन्त अपचायक रहा होगा। इन तत्वों के संयोग से बने यौगिकों ने आगे संयोग कर और जटिल यौगिकों का निर्माण किया होगा। इन जटिल यौगिकों के विभिन्न विन्यासों ने जीवन नींव रखी होगी। एक बार प्रारम्भ हुए जैविक लक्षणों स्पर्धा व संघर्ष के मार्ग पर चलकर वर्तमान सजीव सृष्टि का निर्माण किया होगा।


×   सन् 1929 में जे. बी. एस. हाल्डेन ने ओपेरिन के विचारों को और विस्तार दिया। हाल्डेन ने पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर संकेन्द्रकीय कोशिका की उत्पत्ति तक की घटनाओं को आठ चरणों में बाँट कर समझाया। हाल्डेन ने कहा कि सूर्य से अलग होकर पृथ्वी धीरे-धीरे ठण्डी हुई तो उस पर कई प्रकार के तत्व बन गए। भारी तत्व पृथ्वी के केन्द्र की ओर गए तथा हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन व आर्गन से प्रारम्भिक वायुमण्डल बना। से वायुमण्डल के इन तत्वों के आपसी संयोग से अमोनिया व जलवाष्प बने। इस क्रिया में पूरी ऑक्सीजन काम आ जाने के कारण वायुमण्डल अपचायक हो गया था। सूर्य के प्रकाश व विद्युत डों विसर्जन के प्रभाव से रासायनिक क्रियाओं का दौर चलता रहा है। और कालान्तर में अमीनों अम्ल, शर्करा, ग्लिसरॉल आदि अनेकानेक प्रकार के यौगिक बनते गए। इन यौगिकों के जल में विलेय होने से पृथ्वी पर पूर्वजैविक गर्म सूप बना। 

* सन् 1953 में स्टेनले मिलर ने ' पृथ्वी की प्रारम्भिक अवस्था में अमीनो अम्लों का उत्पादन संभव' लेख प्रकाशित कर ओपेरिन व हाल्डेन के विचारों का समर्थन किया।

×  स्टेनले मिलर का प्रयोग- 

                                                 मिलर ने प्रयोग करने के लिए एक विद्युत विसर्जन उपकरण बनाया। उपकरण में एक गोल पेंदे काफ्लास्क, विद्युत विसर्जन बल्ब तथा एक संघनक लगा था। गोलकी पेंदे के फ्लास्क में पानी भरने के बाद उपकरण से हवा निकालकर उसमें मेथेन, अमोनिया व हाइड्रोजन को 2 : 1 : 2 के अनुपात में भर दिया अर्थात् उन्होंने कृत्रिम रूप से ऐसे वातावरण का निर्माणक किया जो संभवत: प्राथमिक/प्राचीन वातावरण के समान था। 



इसे 100° सेल्सियस से कुछ कम ताप पर रखा गया। गैसों के इसमिश्रण में टंगस्टन के विद्युताग्रों द्वारा चिन्गारी उत्पन्न करने की व्यवस्था की गई। प्रयोग के अन्त में उपकरण के ठण्डा होने पर ए नली में गहरे लाल रंग का तरल जमा हो गया। इस तरल का विश्लेषण करने पर पाया गया कि उसमें ग्लाइसीन, ऐलानिन जैसे अमीनो अम्ल, सरल शर्करा, कार्बनिक अम्ल तथा अन्य कार्बनिक यौगिक उपस्थित थे। इस प्रयोग के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से हुई है।

अन्य लोक मान्यता :-

सृष्टिवाद का सिद्धांत कहता है कि जीवन एक सर्वोच्च प्राणी (भगवान) के हस्तक्षेप के कारण उत्पन्न हुआ। यह सिद्धांत बाइबिल के खाते पर आधारित है, जिसके अनुसार तीन दिनों में पूरी रचना हुई।

 जीवन की उत्पत्ति के सिद्धांत और ये समझाने की कोशिश करते हैं कि कैसे ग्रह पृथ्वी पर जीवित प्राणी पैदा हुए। सामान्य शब्दों में, हम जीवन की उत्पत्ति के सिद्धांतों को दो समूहों में विभाजित कर सकते हैं: एक धार्मिक प्रकृति के और एक वैज्ञानिक प्रकृति के।

धर्म के अनुसार, जीवन एक सर्वोच्च प्राणी द्वारा बनाया गया था। इस सिद्धांत को सृजनवाद के रूप में जाना जाता है। यह सिद्धांत अलौकिक व्याख्याओं पर आधारित है और प्रजातियों के विकास की अवधारणा को खारिज करता है।



दूसरी ओर, कई वैज्ञानिक सिद्धांत हैं जो जीवन की उत्पत्ति की व्याख्या करना चाहते हैं। उनमें से कई को पहले ही त्याग दिया गया है.
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