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कार्य, कार्य के मात्रक new topic 2022


introduction :-

1. कार्य 

2.कार्य होने की  विभिन्न स्थितियां

3.कार्य के मात्रक 

4. 1जुल की परिभाषा 

5. 1अर्ग की परिभाषा 

6. अर्ग और जुल में सम्बन्ध 




                  कार्य                

 + बल का उपयोग करके किसी वस्तु की विरामावस्था में परिवर्तन करना अथवा गतिशील वस्तु के वेग में परिवर्तन करना ही कार्य (Work) है।


* विज्ञान में कार्य तभी माना जाता है जबकि वस्तु में विस्थापन उत्पन्न हो अर्थात् कार्य के लिए बल द्वारा विस्थापन होना अनिवार्य शर्त है। अब हम विभिन्न स्थितियों पर विचार करते हैं-


(i) यदि कोई व्यक्ति गेहूँ से भरी कोठी अथवा पुस्तकों से भरी अलमारी को अपनी जगह से हटाकर दूसरी जगह ले जाने के लिए पूरी ताकत लगाता है, फिर भी वह उसे अपनी जगह से हटा नहीं सकता तो इसका अर्थ यह हुआ कि उस व्यक्ति ने कोई कार्य नहीं किया है, भले ही इस दौरान किये गये परिश्रम के कारण वह थक गया हो। (कारण - शून्य विस्थापन)


(ii) यदि कोई व्यक्ति कुछ समय तक अपने हाथ में वजन लेकर खड़े रहने के कारण थक गया है तो भी वैज्ञानिक दृष्टि से उस व्यक्ति ने कोई कार्य नहीं किया है। (कारण - शून्य विस्थापन) 

(iii) यदि कोई व्यक्ति टेबल पर रखी पुस्तक को अपनी जगह से खिसकाता है, पेन को उठाता है अथवा मॉल में ट्रॉली को खींचकर सामान ले जाता है तो वह व्यक्ति कार्य करता है। इन सभी स्थितियों में व्यक्ति द्वारा लगाये गये बल के फलस्वरूप वस्तु  अपनी जगह से विस्थापित होती है।


विज्ञान में कार्य बल एवं बल की दिशा में उत्पन्न विस्थापन के गुणनफल के बराबर होता है।



   कार्य = बल x बल की दिशा में विस्थापन  


                W = Fx S


 (ध्यान रहे कि विस्थापन S वह विस्थापन है जब तक कि बल वस्तु के संपर्क में है क्योंकि बल के वस्तु से अलग हो जाने पर वह कार्य नहीं करता भले ही वस्तु गतिशील रहे।)

यदि बल की दिशा वस्तु के विस्थापन की दिशा से अलग हो तो विस्थापन की दिशा में बल के घटक द्वारा किया गया कार्य ज्ञात किया जा सकता है।



उपरोक्त चित्र में बिन्दु A पर रखी किसी वस्तु पर बल F इस तरह लगता है कि वस्तु का विस्थापन B तक होने में बल की दिशा वस्तु के विस्थापन की दिशा (चित्र में क्षैतिज) से कोण बनाती है।


अतः किया गया कार्य (W) = बल का विस्थापन की दिशा में                                                           घटक x विस्थापन

                                            =Fcosፀ x S

             (यहाँ विस्थापन की दिशा में बल का घटक =Fcose)


                                          = FScosፀ

                 या।  , W  =  F.S


+ विभिन्न स्थितियों में किया गया कार्य-

Case-1

(i) यदि किसी गाड़ी को धरातल के समान्तर या क्षैतिज के समान्तर खींचा जाये तो वस्तु उसी दिशा में विस्थापित हो जाती है।




अतः किया गया कार्य = FScosθ

                                    = FScos0°

                                   = FS.    ( cos0= 1)

अर्थात् यदि बल या बल का घटक विस्थापन की दिशा में हो तो सम्पन्न कार्य धनात्मक होता है।

Case -2

(ii) अब हम एक ऐसी स्थिति पर विचार करते हैं जिसमें कोई गाड़ी एक समान वेग से गतिमान है। यदि हम इस गाड़ी की गति की दिशा के विपरीत एक बल लगायें तो गाड़ी थोड़ी दूरी पर जाकर रूक जाती है। इस अवस्था में वस्तु पर लगने वाला बल एवं विस्थापन एक दूसरे के विपरीत हैं अर्थात् दोनों दिशाओं के बीच 180° कोण बन रहा है।


  

अतः   किया गया कार्य   (w)   =FScosፀ

                    = FScos180°

                                = -FS (:. cos180° = -1)


अर्थात् यदि बल या बल का घटक विस्थापन की दिशा के विपरीत हो तो सम्पन्न कार्य ऋणात्मक होता है।


इसी प्रकार जब चलती हुई कार में ड्राइवर ब्रेक लगाकर कार की गति कम करता है अथवा उसे रोकता है तो बल एवं विस्थापन एक दूसरे की विपरीत दिशा में होंगे।

Case-3

(iii) यदि m द्रव्यमान की वस्तुh ऊँचाई से पृथ्वी पर गिरती है तो पृथ्वी के गुरूत्वीय त्वरण g के कारण वस्तु पर कार्यरत

          बल (F)   = mg एवं विस्थापन = h

चूँकि बल ऊर्ध्वाधर नीचे की ओर लग रहा है एवं वस्तु भी नीचे

ही गिर रही है, इसलिए θ=0°

अतः गुरूत्वीय बल द्वारा किया गया कार्य = mgh


Case-4

(iv) यदि वस्तु पर लगने वाला बल वस्तु के विस्थापन की दिशा के लम्बवत् हो तो ፀ = 90° होगा एवं किया गया कार्य शून्य होगा (:: cos90° = 0)।


जब वस्तु को समतल धरातल पर बिन्दु A से बिन्दु B तक खींचते हैं तो गुरूत्वीय बल mg द्वारा कोई कार्य नहीं होता है (ө = 90°) 

इस स्थिति में वस्तु के विस्थापन के लिये घर्षण बल के विपरीत कार्य करना पड़ेगा ।



Case-5

(v) वर्तुल गति में गतिमान वस्तु पर अभिकेन्द्र बल अभिलम्बवत् लगता है। अतः अभिकेन्द्र बल द्वारा कोई कार्य नहीं होता है।




+ कार्य के मात्रक -

                             जब बल को न्यूटन में तथा विस्थापन को मीटर में मापा जाता है तो कार्य का मात्रक न्यूटन मीटर होता है।

  इस मात्रक न्यूटन x मीटर को जुल भी कहते हैं।

1 जूल की परिभाषा-

                            यदि किसी वस्तु पर 1 न्यूटन बल लगाने पर वस्तु में बल की दिशा में 1 मीटर विस्थापन उत्पन्न हो जाये तो बल द्वारा वस्तु पर किया गया कार्य एक जूल होता है। 

जब बल को डाइन में तथा विस्थापन को सेंटीमीटर में मापा जाता है तो कार्य का मात्रक डाइन x सेंटीमीटर होता है। 

इस मात्रक डाइन x सेंटीमीटर को अर्ग भी कहते हैं। 

 1 अर्ग = 1 डाइन x 1 सेंटीमीटर


1 अर्ग की परिभाषा -

                                    यदि किसी वस्तु पर 1 डाइन बल लगाने पर वस्तु में बल की दिशा में 1 सेंटीमीटर विस्थापन उत्पन्न हो जाये तो बल द्वारा वस्तु पर किया गया कार्य एक अर्ग होता है।


● जूल तथा अर्ग में संबंध -

1 जूल = 1 न्यूटन x 1 मीटर

           = 10⁵ डाइन x 10² सेंटीमीटर

           = 10⁷अर्ग

Example :-

यदि सफर में जाते समय आप 12 kg के एक थैले को धरती से उठाकर 1.5m ऊपर अपनी पीठ पर रखते हैं तो थैले पर किये गये कार्य की गणना कीजिए। (g = 10ms¯²)

हल-

 दिया हुआ है, थैले का द्रव्यमान (m) = 12 kg

तथा विस्थापन (h) 1.5m

ज्ञात करना है, थैले पर किया गया कार्य थैले पर किया गया 

                          कार्य (W) = FS

                                          = mgh

                                         = 12 kg × 10 ms¯²× 1.5m

                                        = 180Nm

                                       =  180 J



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