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पृथ्वी (Earth),पृथ्वी की उत्पत्ति, विकास और संरचना



           पृथ्वी (Earth)       

Introduction :-

A. सामान्य ज्ञान 

B. पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास 

C. पृथ्वी की संरचना 

  a.  भूपर्पटी

  b. मेंटल

  c. क्रोड़

         Home page

A. सामान्य ज्ञान :-

+ पृथ्वी की सूर्य से दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है। इस दूरी को एक खगोलीय मात्रक भी कहते हैं। पृथ्वी निरन्तर गतिशील रहती है तथा यह अपनी धुरी पर एक दिन में पूरा चक्कर लगाती है, जिससे दिन-रात होते हैं। पृथ्वी के जिस भागपर सूर्य का प्रकाश पड़ता है, वहाँ दिन और शेष भाग में रात होतीहै। पृथ्वी एक वर्ष में सूर्य का एक चक्कर लगाती है । पृथ्वी अपनी धुरी पर सीधी नहीं होकर 23.5 अंश झुकी रहती है। इसी के जिस भाग कारण सूर्य उत्तरायण-दक्षिणायन व पृथ्वी पर ऋतुएँ होती हैं।

        पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास     

+ पृथ्वी का उद्भव कैसे हुआ, इस विषय में विद्वान एकमत नहीं 
हैं। यद्यपि यह माना जाता है कि सौर परिवार के साथ ही इसकी 
उत्पत्ति हुई होगी। ज्वारीय परिकल्पना को वर्तमान में सर्वाधिक 
विश्वसनीय माना जाता है। इसके अनुसार एक विशाल तारा सूर्य
के समीप आया तो आकर्षण के कारण सूर्य से बहुत सा पदार्थ
उभरकर बाहर आ गया था। यह उभार सिरों पर पतला व मध्य में 
मोटा था। बाद में तारा तो अपने रास्ते चला गया और सूर्य से 
बाहर आया भाग टूटकर ग्रहों में बँट गया।


विज्ञान की अनेक शाखाओं द्वारा जुटाए गए प्रमाणों से ज्ञात होता
है कि पृथ्वी का जन्म लगभग 4.5 अरब वर्ष पूर्व हुआ। शुरू में पृथ्वी अत्यधिक गर्म थी। इसे ठण्डा होने में करोड़ों वर्ष लग गए। पृथ्वी के ठण्डा होते समय भारी तत्व गहराई में चले गए और  हल्के तत्वों से पृथ्वी की सतह का निर्माण हुआ, जो गैसें शेष  बचीं उनसे वायुमण्डल का निर्माण हुआ। पृथ्वी को विश्व अथवा वर्ल्ड भी कहा जाता है। पृथ्वी के कुछ भूमि, गैय व टेरा भी हैं। व्यास, द्रव्यमान एवं घनत्व की दृष्टि से पृथ्वी सौरमण्डल में सबसे बड़ा पार्थिव (ठोस) ग्रह है।

               पृथ्वी  की संरचना                

+ ऐसा अनुमान है कि सूर्य से अलग होने के तुरन्त बाद पृथ्वी  उबलते हुए द्रव के गोले की तरह रही होगी। बनने के बाद बहुत को लम्बे समय तक पृथ्वी का अधिकांश भाग तरल ही बना रहा था। इसका एक कारण यह रहा कि अन्तरिक्ष के पिण्ड इससे टकराते रहते थे। 4.40 अरब वर्ष पहले मंगल ग्रह के आकार के एक ही पिण्ड के पृथ्वी से टकराने से चन्द्रमा का उद्भव हुआ। चन्द्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है। यह अपनी  आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, पृथ्वी के अपनी धुरी पर ठीक से झुके रहने में मदद करता है तथा पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। पृथ्वी के ठण्डा होने पर बनी चट्टानें कुछ हल्की व कुछ भारी थी। भारी चट्टानें गहरी धंस गई व हल्के तत्वों से बनी चट्टानें ऊपर रही। ऊपर रही इन हल्की चट्टानों से ही पृथ्वी की सतह बनी।


पृथ्वी के केन्द्र से सतह की दूरी लगभग 3900 किलोमीटर होने का अनुमान है। पृथ्वी में अभी तक 15 किलोमीटर से अधिक गहराई का छिद्र करना संभव नहीं हुआ है।


+ पृथ्वी को मोटे तौर पर तीन प्रकार की परतों से बना हुआ माना

जाता है- 

पहली परत भूपर्पटी है

दूसरी परत का नाम मेंटल है

तथा तीसरी परत का नाम क्रोड़ है।




चित्र- पृथ्वी की आन्तरिक रचना


1. भूपर्पटी-

                      पृथ्वी की ऊपरी परत, भूपर्पटी एक ठोस परत है।इसे पृथ्वी की त्वचा भी माना जा सकता है। इसकी मोटाई सभी स्थानों पर एक समान नहीं है। इस अन्तर के कारण ही कहीं पहाड़ तो कहीं समुद्र बने हैं।

 भूतल दो भागों में बाँटा जाता है-

 (1)जल मण्डल व

(2) स्थल मण्डल। 


वायुमण्डल भी स्थल मण्डल का भाग है। स्थल मण्डल का अधिकांश भाग मृदा से बना होता है। जल, थल व वायुमण्डल का वह भाग जिसमें जीवन पाया जाता है, उसे जैवमण्डल कहते हैं। 

पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य किसी ग्रह पर जैवमण्डल अभी तक नहीं पाया गया । पृथ्वी की भूपर्पटी की संरचना प्रारम्भ से ही ऐसी नहीं रही है। पृथ्वी की भूपर्पटी की संरचना प्रारम्भ से ही ऐसी नहीं रही है, जैसी आज है। वर्तमान में भूपर्पटी का 70 प्रतिशत भाग जल से ढका है। यह सामान्यतः समतल रहता है। शेष 30 प्रतिशत भाग स्थल है जिस पर कहीं मैदान तो कहीं पर्वत, कहीं मरूस्थल तो कहीं घाटियां हैं।

पृथ्वी के बनने के प्रारम्भ के कुछ लाख वर्ष तक भूपर्पटी पतली व एक इकाई के रूप में थी। पृथ्वी के ठण्डे होने के साथ ही भूपर्पटी विशाल चट्टान खण्डों में बदल गई। इन विशाल चट्टान खण्डों को विवर्तनिक प्लेटें कहते हैं।

 महाद्वीप इन्हीं विवर्तनिक प्लेटों पर स्थित हैं। विवर्तनिक प्लेटें धीरे धीरे खिसकती रहती हैं।

इनके खिसकने की गति हमारे नाखूनों के बढ़ने की गति बराबर आंकी गई है। प्रारम्भ में जब विवर्तनिक प्लेटें हल्की थी, इनकी गति कुछ तेज थी। अब गति कम है। पृथ्वी की सतह पर 29 विवर्तनिक प्लेटें पाई गई हैं।


2. मेंटल - 

            पृथ्वी की दूसरी पर्त को मेंटल कहते हैं। यह सबसे मोटी पर्त है। यह अधिकांशत: गर्म पिघली चट्टानों से बनी है। इन सिलिकेट चट्टानों में लोहे व मैग्नीशियम की मात्रा भूपर्पटी की तुलना में अधिक होती है। इसमें उबलते हुए द्रव की तरह बुलबुले उठते रहते हैं। मेंटल पृथ्वी के मध्य भाग पर ऊपर नीचे होती रहती है।


3. क्रोड़- 

             पृथ्वी का केन्द्रीय भाग क्रोड़, सर्वाधिक गहराई पर होने के कारण सबसे अधिक गर्म होता है। इसका तापमान 7000 डिग्री सेन्टीग्रेड होने का अनुमान है। क्रोड़ के गर्म होने का कारण पृथ्वी के बनते समय अन्दर रह गई उष्मा है। क्रोड़ के धीरे-धीरे है। ठण्डा होने के प्रमाण भी मिले हैं। पृथ्वी के क्रोड़ को दो भागों में सभी बाँटा जाता है। अन्दर वाला क्रोड़ ठोस माना जाता है तथा यह कहीं शुद्ध लोहे का बना है। कुछ वैज्ञानिकों ने इस भाग में सोना व है- प्लेटिनम होने की संभावना प्रकट की है। बाह्य क्रोड़ तरल है। और इसमें लोहा व निकिल प्रमुखता से उपस्थित हैं। वैज्ञानिकों  का मानना है कि क्रोड़ स्थिर नहीं होकर पृथ्वी से भी तेज गति से चक्कर लगाता रहता है। क्रोड़ पृथ्वी का सबसे सघन भाग है।  इसका घनत्व भूपर्पटी की तुलना में बहुत अधिक होता है। पृथ्वी के चुम्बकत्व का कारण क्रोड ही है। 

हम पृथ्वी की सतह पर रहते हैं। पृथ्वी की सतह का लगभग 70% हिस्सा जल से ढका है जबकि शेष 30% स्थल भाग पर


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