कार्बन के अपररूप
Introduction :-
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1.कार्बन अपररूपता :-
किसी तत्व के दो या दो से अधिक रूप जो एक-दूसरे से संरचना एवं अन्य भौतिक गुणों में भिन्नता प्रदर्शित करते हों परन्तु समान रासायनिक गुण रखते हों, उस तत्व के अपररूप कहलाते हैं तथा तत्वों के इस गुण को अपररूपता कहते हैं।
कार्बन के अपररूप निम्न दो प्रकार के होते हैं-
(i) क्रिस्टलीय अपररूप
(ii) अक्रिस्टलीय अपररूप
(i) क्रिस्टलीय अपररूप-
वे अपररूप जिनमें कार्बन परमाणु एक निश्चित ज्यामितीय संरचना में पाये जाते हैं, क्रिस्टलीय अपररूप कहलाते हैं। उदाहरण- हीरा, ग्रेफाइट तथा फुलरीन ।
(ii) अक्रिस्टलीय अपररूप-
वे अपररूप जिनमें कार्बन परमाणु एक निश्चित ज्यामितीय संरचना में नहीं होते, अक्रिस्टलीय अपररूप कहलाते हैं। उदाहरण- कोल, कोक, चारकोल (काष्ठ चारकोल व जन्तु चारकोल), काजल तथा गैस कार्बन ।
हीरा
+ सामान्य गुण-
1. यह एक रंगहीन, पारदर्शी तथा अत्यन्त चमकीला पदार्थ है। कोयले की परतों पर चट्टानों का दाब पड़ने से हीरा पारदर्शक हो जाता है।
2.यह काफी भारी होता है।
3. यह अत्यन्त कठोर होता है (हीरा अब तक का ज्ञात सर्वाधिक कठोर पदार्थ है) ।
4. यह विद्युत का कुचालक होता है (मुक्त इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति के कारण) ।
5. यह उच्च तापीय चालक है (ज्ञात पदार्थों में सर्वाधिक, कॉपर की तुलना में 5 गुना ज्यादा) तथा इसका गलनांक भी उच्च (3930°C) होता है।
6. शुद्ध कार्बन को अत्यधिक उच्च दाब एवं ताप पर उपचारित करके हीरे को संश्लेषित किया जा सकता है।
+ हरि की संरचना-
हीरा कार्बन का अतिशुद्ध रूप है। हीरे में प्रत्येक कार्बन परमाणु चार अन्य कार्बन परमाणुओं से एकल बन्ध (C-C आबंध दूरी 154 pm अथवा 1.54 A) द्वारा आबंधित होकर एक दृढ़ त्रिआयामी चतुष्फलकीय संरचना का निर्माण करता है।
हीरा विद्युत का कुचालक होता है क्योंकि हीरे में प्रत्येक कार्बन के चारों संयोजी इलेक्ट्रॉन बन्ध बनाने में प्रयुक्त होते हैं, जिससे इसमें कोई मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होता है।
हीरे की संरचना में प्रबल सहसंयोजक बंधों का त्रिविम जाल होता है, इसीलिए हीरा अत्यधिक कठोर होता है। हीरे के क्रिस्टल में उपस्थित प्रबल सहसंयोजक बंधों के त्रिविम जाल को तोड़ने के लिए अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है, अत: हीरे का गलनांक बहुत उच्च ( 3843K) होता है।
हीरे के उपयोग:-
1. बहुमूल्य रत्नों, आभूषणों में -
जब हीरे को काटकर तराशा जाता है (पॉलिश की जाती है) तो बारम्बार अपवर्तन होने के कारण इसमें तीव्र चमक उत्पन्न होती है। इसी कारण से हीरे का उपयोग बहुमूल्य रत्नों व आभूषणों को बनाने में किया जाता है।
2. काँच काटने में।
3.चट्टानें एवं पत्थर काटने की शॉ मशीन में।
4.फोनोग्राम की सुई बनाने में।
ग्रेफाइट
* ग्रेफाइट ग्रेफो शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है लिखना। हमारी लिखने वाले पेंसिल में ग्रेफाइट ही होता है।
+ सामान्य गुण-
1. यह काले धूसर रंग का अपारदर्शी, चमकीला पदार्थ है।
2. यह हीरे की तुलना में हल्का होता है।
3. यह छूने पर मुलायम, चिकना तथा फिसलन भरा लगता है।
4. यह विद्युत का सुचालक होता है (मुक्त इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के कारण) परन्तु ऊष्मा का कुचालक होता है।
+ ग्रेफाइट की संरचना-
ग्रेफाइट में कार्बन का प्रत्येक परमाणु कार्बन के तीन अन्य परमाणुओं के साथ एक ही तल में बन्ध बनाते हुए षट्कोणीय वलय संरचना बनाते हैं (C-C आबंध दूरी 141.5 pm अथवा 1.42 A)। इनमें से एक बन्ध द्विबंधी होता है जिससे
ग्रेफाइट की संरचना में षट्कोणीय तल एक-दूसरे के ऊपर व्यवस्थित होकर परत संरचना का निर्माण करते हैं। दो क्रमिक परतों के मध्य की दूरी 340pm होती है।
दो परतों के मध्य दुर्बल बंध (दुर्बल वाण्डरवाल्स आकर्षण बल) होने तथा उनके मध्य दूरी अधिक होने से एक परत दूसरी परत आसानी से फिसल सकती है। यही कारण है कि ग्रेफाइट को शुष्क स्नेहक के रूप में प्रयुक्त करते हैं। मुक्त इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति एवं दो परतों के मध्य उपस्थित स्थान के कारण ग्रेफाइट विद्युत का सुचालक होता है।
+ ग्रेफाइट के उपयोग-
(i) लेड पेंसिल बनाने में।
(ii) नर्म होने के कारण चूर्णित ग्रेफाइट का उपयोग शुष्क स्नेहक के रूप में किया जाता है।
(iii) विद्युत का अच्छा चालक होने के कारण इसका उपयोग शुष्क सेलों के इलेक्ट्रॉड बनाने में तथा विद्युत मोटर के कार्बन बुश बनाने में किया जाता है।
(iv) लोहे की वस्तुओं पर पॉलिश करने में।
(v) नाभिकीय परमाणु भट्टी में मंदक के रूप में।
फुलरीन्स
+ फुलरीन की संरचना गोल गुम्बद जैसी होती है। फुलरीन के अणु में 60, 70 या इससे अधिक कार्बन परमाणु पाए जाते हैं। C. सर्वाधिक स्थायी फुलरीन है जिसे बकमिन्सटर फुलरीन भी कहते हैं। C की संरचना में 32 फलक होते हैं जिनमें से 20 फलक 60 षट्कोणीय तथा 12 फलक पंचकोणीय होते हैं। इसकी संरचना फुटबॉल के समान होती है, अत: इसे 'बकीबॉल' भी कहते हैं। C विद्युत का कुचालक होता है एवं इसमें C-C आबंध लम्बाई 1.40 A होती है।
+ फुलरीन के उपयोग-
(i) प्राकृतिक गैस के शुद्धिकरण में।
(ii) आण्विक बेयरिंग में
(iii) उच्च ताप पर अतिचालक होने के कारण तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण ।
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