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प्रत्यावर्ती-धारा-जनित्र-A.C.-Generator की संरचना एवं कार्यप्रणाली




 विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर आधारित युक्ति -

                  विद्युत धारा जनित्र / डायनेमो

घरों में बिजली उत्पादन के लिए  प्रत्यावर्ती धारा जनित्र का उपयोग किया था । जब  बाह्य बल द्वारा धुरी को घुमाया जाता और जिसके कारण हमें विद्युत धारा प्राप्त होते हैं। आईये इसकी संपूर्ण कार्यविधि पर बात करते हैं। 

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+ विद्युत धारा जनित्र विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर आधारित एक ऐसी युक्ति है जिसमें चुम्बकीय क्षेत्र में रखी कुण्डली को यांत्रिक ऊर्जा देकर घूर्णन करवाकर विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जाती है।

 • विद्युत धारा जनित्र निम्न दो प्रकार के होते हैं-

 (i) प्रत्यावर्ती धारा जनित्र

 (ii) दिष्ट धारा जनित्र

https://www.videosprofitnetwork.com/watch.xml?key=600496bcfda1bf2f048a2f45ec03fcd5

x आज  के इस setion मे  प्रत्यावर्ती धारा जनित्र (A.C. Generator) की बनावट तथा कार्यप्रणाली का सचित्र वर्णन करेंगे। 

Let's  start 


प्रत्यावर्ती धारा जनित्र की बनावट- 

इसके मुख्य भाग निम्न हैं-


(i) आर्मेचर या कुण्डली- 

                                                   यह कच्चे लोहे के ढांचे पर लिपटी विद्युतरोधी तांबे के तार की अनेक फेरों वाली एक कुण्डली ABCD है। आर्मेचर को अपनी अक्ष पर घूर्णन कराया जा सकता है।


(ii) क्षेत्र चुम्बक- 

                          आर्मेचर दो चुम्बकीय ध्रुव खंडों N एवं S के मध्य रखा हुआ होता है, जिसे क्षेत्र चुम्बक कहते हैं। छोटे जनित्रों में ये स्थायी नाल चुम्बक होते हैं किन्तु बड़े जनित्र में ये अति प्रबल विद्युत चुम्बक होते हैं।


(iii) सर्पी वलय- 

                         कुंडली के दोनों सिरे दो धातु के वलयों S, एवं S, से जुड़े रहते हैं, इन्हें सर्पी वलय कहते हैं। ये वलय आर्मेचर के पर ही आरोपित रहते हैं तथा उसी के साथ घूर्णन करते हैं।


(iv) ब्रुश- 

                 ये कार्बन अथवा किसी धातु की पत्तियों से बने होते हैं जिनका एक सिरा तो सर्पीवलयों को स्पर्श करता है तथा शेष दूसरे सिरों को बाह्य परिपथ से संयोजित कर दिया जाता है।

सिद्धांत -

                 विद्युत धारा जनित्र विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर आधारित एक ऐसी युक्ति है जिसमें चुम्बकीय क्षेत्र में रखी कुण्डली को यांत्रिक ऊर्जा देकर घूर्णन करवाकर विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जाती है।


संरचना (चित्र) -




प्रत्यावर्ती धारा जनित्र की कार्यप्रणाली 

                                                                               जब आर्मेचर को चुम्बकीय क्षेत्र में इसके घूर्णन अक्ष पर किसी यांत्रिक ऊर्जा स्रोत से घुमाते हैं तो आर्मेचर ABCD से संबद्ध चुम्बकीय फ्लक्स के मान में लगातार परिवर्तन होता है जिससे कुण्डली के दोनों सिरों के मध्य प्रोसित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है। आर्मेचर को घुमाने से कुण्डली बार-बार चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् एवं समान्तर स्थिति में आती है। चूंकि आधे घूर्णन में फ्लक्स की मात्रा बढ़ती है और दूसरे आधे घूर्णन में यह कम होती है, इस कारण प्रथम आधे घूर्णन में धारा की दिशा लोड पर दक्षिणावर्त होती है तो अगले आधे घूर्णन में वामावर्त दिशा में प्रवाहित होती है। दूसरे शब्दों में, आधे घूर्णन तक बुश B, धन इलेक्ट्रॉड होता है और B, ऋण इलेक्ट्रॉड तथा दूसरे आधे घूर्णन के लिए B, ऋण एवं B, धन इलेक्ट्रॉड होता है। 

इस प्रकार आर्मेचर के एक पूरे घूर्णन में निश्चित कालान्तर के बाद धारा की दिशा बदल जाती है तथा इस दौरान धारा का मान भी नियमित रूप से बदलता है, ऐसी धारा प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है।


नोट

प्रत्यावर्ती धारा जनित्र से उत्पन्न विद्युत धारा का मान कुण्डली में फेरों की संख्या, कुण्डली के क्षेत्रफल, घूर्णन वेग तथा चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता पर निर्भर करता है।

दिष्ट धारा जनित्र की संरचना एवं कार्यप्रणाली पढने के लिए 

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